हमारा मानव शरीर या किसी भी जीव का शरीर पंचतत्व से मिलकर बना है इसीलिए कहा गया है:-
क्षिती, जल,पावक,गगन,समीरा
पंच रचित यह अधम शरीरा।।
अर्थात हमारा नश्वर शरीर मिट्टी, पानी, आग,आकाश और हवा से मिलकर बना है ।
इन पंच तत्वों में मिट्टी के रूप में उसके सारे अवयव जैसे कैल्शियम, मैग्नेशियम, पोटैसियम और 16 अव्यव हमारे शरीर में मौजूद हैं। अग्नि के रूप में हमारे शरीर में अग्न्याशय और अन्य ग्रंथि है जो हमारे शरीर के ताप को नियंत्रित करने के साथ साथ भोजन पचाने का काम भी करती है। जल या पानी हमारे शरीर में प्रधानता से विद्यमान होता है ये तो हम सब जानते हैं। फिर वायु जो शरीर में विभिन्न तत्वों का परिचालन करता है अगर आपके शरीर का वायु बिगड़ा तो विभिन्न तरह कि बीमारियां जन्म लेती है ।
हमारे शरीर में मुख्यतया तीन प्रकार के दोष हैं :- कफ, पित्त और वात। न्हींी
इन्हीं तीनों के बिगड़ने से हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियां जन्म लेती हैं। अगर किसी मनुष्य ने इन तीनों को वश में कर लिया तो समझिए उसने बीमारी नामक बीमारी को हरा दिया।
आइए आज हम वात के बारे में चर्चा करते हैं और वात को समझने की कोशिश करते हैं।
वात द्वारा होने वाले रोगों की कुछ विशेषताएं इस प्रकार है:-
रुक्षः,शीतः,लघु,सूक्ष्म,लोद,विषम,खड़ऽ।
विपरेत द्रव्य मारूत प्रशामंती।।
अर्थात वात दोष का रोग रुक्षष्णता लिए होता है , रूखापन
इससे रोगी को ठंड अधिक लगती है यथा गर्मी में भी पंखा चलाने से कतराता है। शरीर में शुक्ष्मत आ जाती है। बोलने में परेशानी यथा बुदबुदाहट या हकलापन आ जाता है, शरीर छोटा पतला हो जाता है। शरीर में आलसीपन आ जाता है रोगी को अचानक से गुस्सा आना लगता है और रोगी खीझने लगता है। नींद गहरी नहीं होती और सो कर उठे फिर भी आलस्य या ऊंघी आती रहती है। ठंड में अत्यधिक बीमार पड़ते हैं । वात से 80 प्रकार के रोग होते हैं। चंचलता बहुत होती है। तेजी से चलने की या हड़बड़ाहट होती है। शरीर अस्थिर होता है। हाथ पैर मोरने पर कट कट की आवाज़ आती रहती है। तव्चा का फटना और अपने आप हड्डी का टूटना भी वात दोष के लक्षण है। शरीर रुखा और खुरदुरा होता है। शीघ्र निर्णय लेते है और जल्दी जल्दी बोलने कि और ज्यादा बोलने कि प्रवृति होती है। बहुत जल्दी किसी बात को समझ जाते हैं और उतनी ही शीघ्रता से भूल भी जाते हैं। याददाश्त लंबे समय तक नहीं टिकती लेकिन अल्प समय के लिए बहुत अच्छी होती है।
कारण :-
वात हमारे पूरे शरीर में विचरण करता है। और मुख्यता से 5 जगहों को प्रभावित करता है ।
हृदय प्राणों , गुदे पानो , समान नाभि मंडले।
उदान कंठ देशाश्य व्यान सर्व शरीरः।।
अर्थात हृदय में प्राण का स्थान है, गुुदा में अपान का स्थान है, ऐसा ही समान हमारे नाभि मंडल में विचरन करता है ,
उदान प्राण कंठ से ऊपर और व्याण प्राण पूरे शरीर में विचरण करता है। और शरीर के सम्पूर्ण क्रियाओं को निर्धारित करता है। वात के प्रभावित होने से शरीर के सम्पूर्ण क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है और शरीर में रोग कि वृद्धि होती है। शरीर में मल, मूत्र , छिक इत्यादि रोकने पर वात दोष होता है। अतः स्वाभाविक क्रियाओं को कभी रोकना नहीं चाहिए। एकबार भोजन करने के पश्चात पचने से पहले अगर आपने दोबारा भोजन कर लिया तो भी वात दोष लगता है। अतः कहा गया है कि दो भोजन के बीच कम से कम 4 घंटे का अंतर रखा जाए। बिना भूख के भोजन नहीं करना चाहिए। अनियमित भोजन से भी वात दोष लगता है। ससमय नींद नहीं लेने से, ज्यादा जागने से, रूखे कसैले भोजन से या अत्यधिक यात्रा से भी वात दोष प्रभावित होता है। अधिक सूखे मेवे अर्थात ड्राई फ्रूट खाने से भी वात दोष होता है अतः मेवे को हरदम पानी या दूध में फूला के खाना चाहिए। संभौगिक क्रियाओं को अधिक करने से भी वात दोष उत्पन्न होता है। आंतरिक और बाह्य दवाब अर्थात डिप्रेशन और डर से भी वात दोष प्रभावित होता है। अधिक मात्रा मेे और ठंडा या बासी खाना खाने से वात दोष उत्पन्न होता है।
उपचार ;-
प्रथमतः उपरोक्त क्रियाएं जितना कम हो सके वो करें।
आयुर्वेद में कुछ महर्षियों के अनुसार नवंबर, दिसंबर और जनवरी वात का समय है और इस समय अर्जुन के छाल का काढ़ा या अर्जुन के छाल के पाउडर को सुबह दूध के साथ पीने पर इस रोग से निजात मिल सकता है।
त्रिफला का सेवन सुबह सुबह गुड़ के साथ करने पर भी पित्त, कफ और वात से राहत मिलती है ।
नोट:- त्रिफला बाजार से ना मंगाए स्वयं बनाए। बाजार के पैक्ड प्रोडक्ट पर भरोसा करना ठीक नहीं।
तत्पश्चात हमे कुछ और नियम अपनाने चाहिए जिससे हमारा कफ पित्त और वात संतुलित अवस्था में रहे । ये पूरा जाने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करे।
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